आपको ये जानकर हैरानी होगी कि सनातन संस्कृति के आधार ग्रंथ वेद, गीता, उपनिषद आदि में कहीं भी जाति व्यवस्था का उल्लेख या हिमाकत नहीं की गई है। सिर्फ वर्ण व्यवस्था थी, जो जन्म आधारित नहीं, बल्कि कर्म आधारित व्यवस्था थी।
लेकिन फिर आए विदेशी आक्रांता और अंग्रेज। सामाजिक उथल पुथल और विदेशियों की जातिवाद (racism) ने अपने इसी दूषित नज़रिए से एक वैज्ञानिक वर्ण व्यवस्था को देखकर उसे जाती व्यवस्था में तब्दील कर दिया। इसके बाद जातिवादी राजनीति करने वाले सियासी दलों ने अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए मज़बूत किया। और आए दिन जाती के नाम पर देश को बांटने की कोशिशें होती रहती हैं।
और हम इस सनातन सत्य को भूल जाते हैं कि इसी सनातन संस्कृति में एक ब्राह्मण कुल से क्षत्रिय शूरवीर बाजीराव पैदा होता है। एक शुद्र कुल से महर्षि वाल्मीकि और वेदव्यास जैसा ब्राह्मण पैदा होता है।
मतलब साफ है, सनातन में कास्ट यानी जाती कोई मायने नहीं रखती।
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