नीलकंठ शिव
जब अमृत प्राप्ति के लिए देव और असुरो ने समुद्र मंथन किया तो विभिन्न अनमोल वस्तुओ के अलावा भयंकर विष यानी हलाहल भी समुद्र से निकला. सृष्टि को उसा हलाहल से बचाने के लिए भगवान शिव ने उसे पी लिया, लेकिन माता पार्वती ने उनका कंठ दबाकर रोक लिया ताकि वह शिव के शरीर में ना फैले. इसी कारण से शिवजी का कंठ नीला हुआ और वह नीलकंठ कहलाए!
नटराज शिव
जब अज्ञानता के प्रतीक वामन कद के दैत्य अपस्मार ने भगवान शिव को चुनौति दी तो शिव ने नटराज स्वरूप धारण करके तांडव नृत्य किया और अपने दाहिने पैर से अज्ञानी अपस्मार का नाश किया. उनके नटराज अवतार का संदेश यही है कि केवल ज्ञान, संगीत और नृत्य द्वारा अज्ञानता पर विजय प्राप्त हो सकती है.
शिव और उनके शरीर पर भस्म
जब माता सती के पिता ने अपनी सभा में शिव का अपमान किया तो सती वहाँ स्थित हवन कुंड में कूद गई. भगवान शिव को पता चला तो जलते कुंड से सती के शरीर को निकालकर वह प्रलाप, क्रोध और संताप से ब्रह्माण्ड में घूमते रहे। और जहां भी सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो गई। फिर भी शिव का संताप जारी रहा। तब श्री हरि ने सती के शरीर को भस्म में परिवर्तित कर दिया। शिव ने विरह की अग्नि में भस्म को ही उनकी अंतिम निशानी के तौर पर तन पर लगा लिया।
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